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अमेरिका-सऊदी अरब संबंध और भारत

26.11.2025

 

अमेरिका-सऊदी अरब संबंध और भारत

 

1945 से चले आ रहे US-सऊदी रिश्तों को “Oil for Security” अरेंजमेंट से आकार मिला है : सऊदी अरब ने ग्लोबल मार्केट को स्टेबल एनर्जी सप्लाई पक्की की, जबकि US ने किंगडम को सिक्योरिटी गारंटी, मिलिट्री इक्विपमेंट और स्ट्रेटेजिक प्रोटेक्शन दिया।

 

हालिया विकास: सऊदी अरब एक प्रमुख गैर-NATO सहयोगी (MNNA) के रूप में

नवंबर 2025 में , अमेरिका ने सऊदी अरब को मेजर नॉन-NATO सहयोगी (MNNA) बनाया । यह एक ऐसा कदम है जो NATO जैसे कलेक्टिव डिफेंस कमिटमेंट दिए बिना मिलिट्री और स्ट्रेटेजिक सहयोग को काफी बेहतर बनाता है।

एमएनएनए स्टेटस की मुख्य विशेषताएं

  • एडवांस्ड US मिलिट्री टेक्नोलॉजी तक पहुंच ।
     
  • मिलिट्री इक्विपमेंट डिलीवरी में प्रायोरिटी ।
     
  • जॉइंट रिसर्च, डेवलपमेंट और डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग
     
  • सऊदी ज़मीन पर
    US मिलिट्री हार्डवेयर जमा करने की एलिजिबिलिटी ।
  • इंटेलिजेंस-शेयरिंग, ट्रेनिंग और ऑपरेशनल सहयोग का विस्तार ।
     

प्रमुख संबद्ध समझौते

  • F-35 फाइटर जेट और लगभग 300 मॉडर्न US टैंकों से जुड़ी एक बड़ी हथियार डील ।
     
  • AI, डिफेंस R&D, मिसाइल सिस्टम और सिविल न्यूक्लियर प्रोजेक्ट्स में सहयोग ।
     
  • यूएस-सऊदी स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फ्रेमवर्क के तहत को-प्रोडक्शन के लिए लॉन्ग-टर्म प्लान ।
     

यह डेवलपमेंट खाड़ी में चीन के बढ़ते असर का मुकाबला करने की US की कोशिशों को दिखाता है, खासकर तब जब चीन ने सऊदी-ईरान मेल-मिलाप में मध्यस्थता की थी , और ऐसे समय में जब चीन सऊदी अरब का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर बन गया है।

 

भारत के लिए निहितार्थ

1. सुरक्षा संबंधी चिंताएँ

  • सऊदी-पाकिस्तान के बीच गहरी डिफेंस पार्टनरशिप से यह चिंता बढ़ गई है कि सऊदी अरब को सप्लाई किए गए US-ओरिजिनल, हाई-एंड हथियार इनडायरेक्टली पाकिस्तान की मिलिट्री कैपेसिटी को बढ़ा सकते हैं।
     
  • इससे मौजूदा क्षेत्रीय तनाव के बीच भारत की सुरक्षा गणना मुश्किल हो जाती है।
     

2. ऊर्जा और आर्थिक चिंताएँ

  • भारत का डिस्काउंटेड रूसी तेल का बड़ा इम्पोर्ट , उसे सऊदी अरब और US दोनों की स्ट्रेटेजिक एनर्जी पसंद के मुकाबले खड़ा करता है।
     
  • सऊदी अरब भारत में मार्केट शेयर वापस पाने की कोशिश कर सकता है, जबकि US रूसी क्रूड पर भारत की लगातार निर्भरता को लेकर सावधान है।
     
  • इससे भारत के लिए एक नाजुक डिप्लोमैटिक बैलेंसिंग एक्ट बनता है।

निष्कर्ष

US द्वारा सऊदी अरब को मेजर नॉन-NATO सहयोगी बनाना , खाड़ी की जियोपॉलिटिक्स में एक बड़ा बदलाव दिखाता है, जिसका सीधा असर भारत के सिक्योरिटी माहौल, एनर्जी डिप्लोमेसी और फॉरेन पॉलिसी स्ट्रैटेजी पर पड़ेगा । जैसे-जैसे ग्लोबल पावर कॉम्पिटिशन तेज़ हो रहा है, भारत को सोच-समझकर डिप्लोमैटिक एंगेजमेंट के साथ इन बदलावों को समझना होगा।

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